Bhola ki Bholagiri - 1 in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | भोला की भोलागिरी - 1 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

Featured Books
Categories
Share

भोला की भोलागिरी - 1 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

भोकौन है भोला ?

भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.

उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.

भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.

भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.

और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!

और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.

तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’

... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.

कहानी-1

भोलू ने प्राण को उड़ते देखा

भोला के दो नाम थे- बुद्धूराम और अकलबंद.

लेकिन वह अकलबंद से अकलमंद बनना चाहता था. इसीलिए तो बारह साल के भोला ने मॉर्निंग वॉक शुरू कर दी थी.

अभी भी पूरी तरह सुबह नहीं हुई थी. हल्का अंधेरा छाया था. मौसम थोड़ा ठंडा था, क्योंकि रात को बारिश हुई थी.

भोला हल्की दौड़ लगाता हुआ जब नीम वाले चबूतरे के पास पहुंचा, तो देखा- रघू के दादाजी चौधरी दद्‍दू जूते उतार कर, लाठी को एक तरफ रखकर सो रहे हैं.

भोला रूक गया. दिमाग में खुजली हुई और नज़र दद्‍दू के तलवों पर पड़ी और वह तलवों पर गुदगुदी लगाने के लिए हाथ बढ़ाने लगा.

तभी दद्‍दू की छाती पर कुछ फड़फड़ाहट हुई और सफेद पक्षी सा कुछ आकाश की तरफ उड़ गया.

जी हां, अंधेरे के बावजूद भोला ने यह सब साफ देखा. उसने एक नज़र दद्‍दू पर डाली. दद्‍दू निढाल पड़े थे.

वह घबरा कर दौड़ पड़ा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा-चौधरी दद्‍दू के प्राण निकल गए. चौधरी दद्‍दू के प्राण निकल गए. मैंने अपनी आंखों से प्राण को निकलते देखा. आकार की तरफ जाते देखा.

भोला को रोककर सब नीम के चबूतरे की तरफ चल पड़े. चौधरी दद्‍दू को हिलाया तो वह चौंक कर उठ पड़े.

उठते ही अपनी ओवरकोट की जेब टटोलने लगे और बोले, ‘‘ अरे मेरा कबूतर कहां गया? भीग गया था, उड़ नहीं पर रहा था इसलिए मैंने उसे सुखाने के लिए जेब में रख दिया था. चलो अच्छा हुआ सूख कर उड़ गया.

अब सबकी समझ में आया कि भोला ने जिसे दद्‍दू का प्राण समझा, वो असल में एक कबूतर था.

फिर सबने एक स्वर में कहा-बुद्धूराम!

ला की भोलागिरी

(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

कौन है भोला ?

भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.

उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.

भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.

भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.

और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!

और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.

तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’

... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.

कहानी-1

भोलू ने प्राण को उड़ते देखा

भोला के दो नाम थे- बुद्धूराम और अकलबंद.

लेकिन वह अकलबंद से अकलमंद बनना चाहता था. इसीलिए तो बारह साल के भोला ने मॉर्निंग वॉक शुरू कर दी थी.

अभी भी पूरी तरह सुबह नहीं हुई थी. हल्का अंधेरा छाया था. मौसम थोड़ा ठंडा था, क्योंकि रात को बारिश हुई थी.

भोला हल्की दौड़ लगाता हुआ जब नीम वाले चबूतरे के पास पहुंचा, तो देखा- रघू के दादाजी चौधरी दद्‍दू जूते उतार कर, लाठी को एक तरफ रखकर सो रहे हैं.

भोला रूक गया. दिमाग में खुजली हुई और नज़र दद्‍दू के तलवों पर पड़ी और वह तलवों पर गुदगुदी लगाने के लिए हाथ बढ़ाने लगा.

तभी दद्‍दू की छाती पर कुछ फड़फड़ाहट हुई और सफेद पक्षी सा कुछ आकाश की तरफ उड़ गया.

जी हां, अंधेरे के बावजूद भोला ने यह सब साफ देखा. उसने एक नज़र दद्‍दू पर डाली. दद्‍दू निढाल पड़े थे.

वह घबरा कर दौड़ पड़ा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा-चौधरी दद्‍दू के प्राण निकल गए. चौधरी दद्‍दू के प्राण निकल गए. मैंने अपनी आंखों से प्राण को निकलते देखा. आकार की तरफ जाते देखा.

भोला को रोककर सब नीम के चबूतरे की तरफ चल पड़े. चौधरी दद्‍दू को हिलाया तो वह चौंक कर उठ पड़े.

उठते ही अपनी ओवरकोट की जेब टटोलने लगे और बोले, ‘‘ अरे मेरा कबूतर कहां गया? भीग गया था, उड़ नहीं पर रहा था इसलिए मैंने उसे सुखाने के लिए जेब में रख दिया था. चलो अच्छा हुआ सूख कर उड़ गया.

अब सबकी समझ में आया कि भोला ने जिसे दद्‍दू का प्राण समझा, वो असल में एक कबूतर था.

फिर सबने एक स्वर में कहा-बुद्धूराम!

कहानी-2

भोला ने मेवा बोया

इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी ने छतरी को सुखाने के लिए गर्म इस्त्री यानी प्रेस का इस्तेमाल किया हो. इस्त्री ज़्यादा गर्म थी, सो उसके छूते ही छतरी का कपड़ा सर्रऽऽ से जल गया. और इस घटना ने भोला को एक बार फिर बुद्धूराम साबित कर दिया.

इस घटना की चर्चा सुन, किराने वाले ने भी उसे नसीहत दे डाली, ‘‘ बुद्धूराम मेवा यानी बादाम, अखरोट, काजू-किशमिश खा. अक्ल बढ़ेगी!’’

भोला ने भोलेपन से पूछा, ‘‘ ये सब कितने में आएगा और कितने दिन खाना पड़ेगा.’’

किराने वाला बोला, ‘‘ मेवा महंगी चीज होती है. पाव-पाव भी लेगा तो पांच सात सौ लग जाएंगे. चल मैं तुझे आज मुफ़्त में खिलाता हूं. मगर तीन-चार महीने लगाता खाएगा, तो ही बात बनेगी.’’

यह कहकर किराने वाले ने उसे एक बादाम, एक अखरोट का टुकड़ा, एक किशमिश, एक काजू , एक पिस्ता और एक अंजीर दे दिया.

भोला ये सब लेकर खुशी-खुशी चल दिया. और चलते-चलते सोचने लगा, ‘अगर इनको खा लिया तो खत्म. लेकिन अगर बो दूं तो इनके पेड़ उगेंगे मेवे लगेंगे. इन मेवों को पूरे साल खा सकता हूं. और फसल ज़्यादा हुई तो स्कूल के बच्चों को भी खिला सकता हूं. सबको तेज दिमाग की ज़रूरत है.’

यह सोचकर घर से बाहर उसने थोड़ी-थोड़ी दूर पर ये सभी मेवे बो दिए और सबको अच्छी तरह सींच दिया.

सोचा कि अगली सुबह खोदकर एक बार देख लेगा कि उनमें अंकुर आने शुरू हुए हैं या नहीं.

मगर रात होते ही वहां एक चूहां आया, उसने उस कीचड़ में गड्‍ढे खोद-खोद कर सारे मेवे खा डाले.

इधर उसकी ताक में छिपे एक सांप ने उसे दबोचा और पूरा निगल गया. अब सांप पर नजर पड़ी एक मोर की, वह भी लपक पड़ा सांप पर और उसको खा गया. मोटे-ताजे सांप को खाकर उसका पेट भर गया और चूहें के खोदे गड्‍ढे में उसका पैर भी फंस गया, इसलिए वह भी वही निढाल होकर सो गया.

अगले दिन भोला उठा, तो देखा मेवे के गड्‍ढे में एक मोर फड़फड़ा रहा है. पहले तो उसे ताज्जुब हुआ कि मेवे का पेड़ क्या मोर जैसा होता है. मगर जैसे ही भोला मोर को पकड़ने गया, मोर ने उड़ने से पहले उसके सिर पर इतनी जोर से ठोकर मारी कि अगर भोला के पास दिमाग होता तो वो फूट कर बाहर आ जाता.

शुक्र था भोला को कुछ नहीं हुआ.